खीरा की उन्नतशील खेती कैसे करें ! Cucumber Farming In Hindi


खीरा की खेती लगभग पूरे भारतवर्ष में की जाती है सलाद के रूप में यह संपूर्ण विश्व में खाया जाता है इसके अलावा इससे विभिन्न तरह की मिठाइयां तैयार की जाती हैं।पेट की गड़बड़ी होने तथा कब्ज में खीरा औषध के रूप में प्रयोग किया जाता है। खीरा में अधिक मात्रा में फाइबर होता है। इसलिये खीरा कब्ज दूर करता है।पीलिया होने पर ,शरीर की जलन ,और गर्मी से उत्पन्न होने वाले सभी तरह के परेशानी खीरा से दूर हो जाते हैं। खीरे का रस पथरी में लाभदायक है। पेशाब में जलन या रुकावट और अन्य तरह की बीमारियों में फायदा पहुंचाता है।इसके फल खाने से पाचन शक्ति बढ़ती है। खीरा में विटामिन सी अधिक मात्रा में पाया जाता है। खीरा की फसल एक बहुत ही लाभदायक फसल में मानी जाती है।अगर आप सही तरीके से इसकी फसल कर सकें, तो आप इससे काफी फायदा उठा सकते हैं।आज हम आपको खीरा की उन्नत सिर्फ फसल उगाने की जानकारी दे रहे हैं।


खीरे की खेती के लिये मिट्टी
खीरा लगभग सभी तरह की मिट्टी में उगाया जा सकता है। खीरा के लिए शीतोष्ण एवं समशीतोष्ण दोनों ही जलवायु अच्छी।होती हैं। इसकी फलों के लिए 13 से 18 डिग्री तापमान उपयुक्त होता है । और पौधों के विकास के लिए 18 से 25 डिग्री सेंटीग्रेड तापमान की जरूरत पड़ती है।अच्छे जल निकास वाली उर्वरक मिट्टी खीरा की उन्नतशील खेती के लिए सर्वोत्तम रहती है। ऐसी मिट्टी जिस का पीएच मान 5.5 से लेकर 6.8 तक है वह मिट्टी खीरा की खेती के लिए सही है। खीरा की फसल गर्मी और  वर्षा ऋतु दोनों समय ली जाती है। अतः इसके पौधे के लिए ज्यादा तापमान की जरूरत होती है। खीरा की फसल पाले को सहन नहीं कर पाती इसलिए इसे पाले से बचा कर रखना चाहिए।
 


बुबाई का समय -
ग्रीष्म ॠतु - फरवरी - मार्च
वर्षा ॠतु  - जून - जुलाई

खीरे की उन्नतशील किस्में -
खीरे की उन्नतशील खेती करने के लिए बहुत सारी उन्नत प्रजातियां बाजार में मौजूद हैं जैसे जापानी लॉन्ग, हिमांगी, पूना खीरा ,पूसा संयोग खीरा , शीतल खीरा, पूसा हाइब्रिड 1, पूसा हाइब्रिड 2, कल्याणपुर हरा खीरा आदि ऐसी ही अनेक प्रजातियां उन्नतशील खेती के लिए सही है।यह किस्में आपको बाजार में आसानी से मिल जायेगी।खीरा की खेती करने के लिए हमेशा अच्छी किस्म के बीजों का ही चयन करें ।जिससे आपको अच्छा उत्पादन मिल सके।और आपको ज्यादा मुनाफा हो।

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बीज की मात्रा कितनी लें ?
प्रति एकड़ बुबाई हेतु 200 से 250 ग्राम बीज की आवश्यकता होती है। खीरे की खेती में खीरे की बुवाई लाइन में करते हैं। ग्रीष्म ऋतु के लिए लाइन से लाइन की दूरी 1.5 मीटर और पौधे से पौधे की दूरी 50 से 75 सेंटीमीटर रखते हैं वर्षा ऋतु वाली खीरे की फसल में पौधा वृद्धि ज्यादा करता है।इसलिए इसमें लाइन से लाइन की दूरी तो 1.5 मीटर ही रखते हैं। लेकिन पौधे से पौधे की दूरी 75 सेंटीमीटर से 1 मीटर तक कर दी जाती है। खीरे की उन्नतशील खेती करते समय बीज को नाली बनाकर या बेड बनाकर ही लगाना चाहिए।इसके अलावा खेत में बीज लगाने से पहले बीज का शोधन आवश्यक है।


बीज का शोधन करने का तरीका ।
खेती में किसी भी बीज की बुवाई करने से पहले अगर उसका शोधन कर लिया जाए तो ज्यादा बेहतर रहता है। खीरे की उन्नतशील खेती में भी आप बीज लगाने से पहले बीजों का शोधन कर ले इसके लिए 2 ग्राम केप्टान / लीटर पानी में मिलाकर घोल तैयार करें।फिर इस घोल में बीजों को 3-4 घन्टे भिगोयें। बाद में बीजों को निकालकर छाया में सुखा लें और बुबाई करें।


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बुबाई पूर्व खेत की तैयारी -
खीरा की उन्नतशील खेती करते समय अगर आप अधिक उत्पादन लेना चाहते हैं। तो खेत की दो तीन बार गहरी जुताई करें उसके बाद 1-2 जुताई कल्टीवेटर से करने के बाद खेत को भुरभुरा बना दे।बीज लगाने से पहले और आखिरी जुताई करते समय खेत में 20 से 30 टन प्रति हेक्टेयर की दर से सड़ी हुई गोबर खाद अवश्य मिलाये। खीरा को जीवाश्म खाद काफी पसंद है। इसके अलावा जीवाश्म खाद का प्रयोग करने से मिट्टी की संरचना में बदलाव नहीं होता जिससे आगे भी आप उस खेत में अन्य फसलें आसानी से होगा सकते हैं।जब खेत अच्छे तरीके से भुरभुरा बनकर तैयार हो जाए उसके बाद उसमें नालियां बना लें।आजकल ट्रैक्टर की सहायता से नालियां तैयार कर दी जाती हैं। जिससे पैसे और श्रम दोनों की बचत होती है।




खीरे में खाद और उर्वरक कैसे दें -
खीरा की उन्नतशील खेती करते समय बुवाई से पूर्व ही खेत में 20 से 25 टन सड़ी हुई गोबर खाद प्रति हेक्टेयर की दर से मिला देनी चाहिए। आखिरी जुताई के समय 40 किलो नाइट्रोजन(कुल नाइट्रोजन का 1/3 भाग ) 60 किलो फास्फोरस और 75 किलो पोटाश भी जुताई करते समय मिला देना चाहिए। बाकी बची ही नाइट्रोजन पौधे पर तीन से चार पत्ती आने पर तथा शेष नाइट्रोजन पौधे पर फल की शुरुआत होने पर दी जाती है।


सिंचाई - 
खीरे की बुवाई के समय खेत में नमी पर्याप्त मात्रा में रहनी चाहिए अन्यथा बीजों का अंकुरण सही तरीके से नहीं हो पाता। बरसात के मौसम वाली फसल के लिए सिंचाई की ज्यादा जरूरत नहीं पड़ती। सामान्यतः गर्मी की फसल को पांचवे दिन और जाड़े की फसल में 10 से 15 दिन बाद सिंचाई की जरूरत पड़ती है। पौधे की वृद्धि होने पर और फूल से बन फल बनते समय सिंचाई अवश्य करें।




निराई - गुड़ाई - 
खीरे की फसल में खासकर वर्षा ऋतु में खरपतवार नियंत्रण की अधिक जरूरत पड़ती है।बरसात होने पर जमीन पर तरह-तरह के खरपतवार निकल आते हैं।फसल से अच्छा उत्पादन लेने के लिये समय-समय पर निराई गुड़ाई होना आवश्यक है। अगर समय से निराई गुड़ाई नहीं करेंगे तो फसल की वृद्धि पर प्रतिकूल असर पड़ेगा। निराई गुड़ाई करते समय खीरे के पौधे की जड़ों के पास मिट्टी चढ़ा देनी चाहिए।इससे बरसात होने पर भी खीरे का पौधा खराब नहीं होगा। गर्मियों के मौसम में समय से निराई- गुड़ाई करें।जिससे मिट्टी में भुरभुरापन बना रहता है। इससे पौधे की वृद्धि तेजी से होती है।


तुड़ाई एवं उपज -
अच्छी देखरेख और मेहनत से के फल जब तैयार होने लगे तो ताजे एवं कोमल फल तोड़ने चाहिए। सामान्यतः  2 माह बाद ही खीरे की फसल से फल मिलने लगते हैं। 2 से 3 दिन के अंतराल पर आप फलों की तुड़ाई कर सकते हैं। एक हेक्टेयर खेत  से 100 से 150 कुंटल फल आसानी से मिल जाता है।


बीमारी एवं उपचार -
खीरे का पौधा और फल काफी सुकोमल होता है। एवं इसके पीले रंग के फूल होते है जो बहुत ज्यादा कीटों को आमंत्रित करते हैं। इसलिए इन पर तरह-तरह की बीमारियों का प्रकोप होता रहता है। अच्छी उपज के लिये समय से इन बीमारियों का नियंत्रण एवं उपचार बहुत जरूरी है। चलिये जानते है कि खीरे की फसल पर किन-2 बीमारियों का प्रकोप होता है।



1- फल छेदक कीड़ा - 
फल छेदक कीड़े की समस्या खीरे में बहुत ज्यादा आती है। यह कीड़ा सबसे पहले फूल को खा जाता है और फलों में छेद करके उन में घुस जाता है।यह खीरे की फसल को सबसे ज्यादा नुकसान पहुंचाता है। इसके उपचार के लिए इण्डोसल्फान 4% 20 से 25 किग्रा0(पाउडर)  प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव करना चाहिए।
2-लाल कीड़ा - 
खीरे की फसल की प्रारंभिक अवस्था में छोटी-छोटी पत्तियां काफी कोमल होती हैं। उस समय यह लाल कीड़ा फसल को नुकसान पहुंचाता है। जनवरी - फरवरी और अक्टूबर-नवंबर माह में यह खीरे की फसल पर आक्रमण करता है और उसी समय यह सबसे ज्यादा नुकसान पंहुचाता है। इस कीट की सुडी(लार्वा) जमीन के अंदर पाई जाती है।जो बाद में कीड़े का रूप ले लेती है। यह कीड़ा पौधे की छोटी-छोटी पत्तियों को खाकर पूरे पौधे को नष्ट कर देते हैं।
उपचार -
इण्डोसल्फान -4% का चूर्ण सुबह-2 जब पौधे की पत्तियों पर ओस होती है तब पौधों की पत्तियों पर इसके चूर्ण का छिड़काव करना चाहिये।
3- सफेद मक्खी - 
यह कीट सफेद रंग के चिपचिपे पदार्थ से ढके होने के कारण यह सफेद मक्खी के नाम से जाना जाता है। इस कीट के छोटे बच्चे या बड़े कीट सभी पौधे के कोमल भाग पर चिपक जाते हैं। और पौधे के रस को चूस कर पौधे को निर्जीव कर देते हैं। इनका प्रकोप होने पर पौधे की वृद्धि रुक जाती है और आखिर में पौधा मर जाता है।
उपचार - 
इमिडाक्लोपिड 17.8 
थायामेथेक्जाम 25WG/0.35/लीटर की दर से छिड़काव करें।
4- एन्थ्रेकनोज -
इस रोग में पौधे की पत्ती एवं फलों पर लाल रंग के धब्बे बन जाते हैं । जो की पत्तियों को खराब कर देते हैं। पत्तियां खराब होने पर पौधा भोजन नहीं बना पाता और आखिर में पूरा पौधा ही सूख जाता है । इस रोग की रोकथाम के लिए बीज को बुवाई से पहले एग्रोसेन जी. एन. से उपचारित कर लेना चाहिए।

खीरा की उन्नतशील खेती कैसे करें ! Cucumber Farming In Hindi खीरा की उन्नतशील खेती कैसे करें ! Cucumber Farming In Hindi Reviewed by homegardennet.com on मार्च 08, 2020 Rating: 5

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