मिर्च पर लगने वाली बीमारियां और उनका उपचार



मिर्च सबसे ज्यादा प्रयोग की जाने वाली सब्जी है। खेती और बागवानी दोनों जगह यह बड़े स्तर पर उगाई जाती है। मिर्च के पौधों पर अनेंक बीमारियों का प्रकोप होता रहता है आज हम मिर्च पर आने वाली बीमारी और उनके रोकथाम को बतायेगें।
मिर्च की फसल में सबसे घातक तथा ज्यादा नुकसान करने वाली बीमारी है पत्ता मोड़क ( leaf curl ) बीमारी। जिसे विभिन्न स्थानों में कुकड़ा या चुरडा-मुरडा लोग के नाम से जाना जाता है। यह लोग ना होकर थ्रिप्स व माइट के प्रकोप के कारण होता है।थ्रिप्स के प्रकोप के कारण मिर्च की पत्तियां ऊपर की ओर मुड़कर नाव का आकार धारण कर लेती है माइट के प्रकोप से पत्तियां मुड़ जाती हैं परंतु यह नीचे की ओर मुड़ती है मिर्च में लगने वाले माइक बहुत ही छोटी होती हैं जिन्हें साधारण है आंखों से देखना संभव नहीं है।





यदि दोनों थ्रिप्स व माइट का प्रकोप एक साथ हुआ है तो कीटनाशक तथा माइटी साइट का उपयोग एक साथ करना होगा। दोनों के प्रकोप की स्थिति में थ्रिप्स के लिए ट्राईजोफोस 40 ई•सी• के 30 मिली तथा माइट के लिए प्रॉपरजाइट 57 % ई•सी• के 40 मिली प्रति 5 लीटर पानी के अच्छे परिणाम देखने को मिले हैं।



मिर्च की फसल में एकीकृत कीट प्रबंधन

थ्रिप्स--
यह छोटे-छोटे कीड़े पत्तियों एवं अन्य मुलायम भागों से रस चूसते हैं। इसका आक्रमण रोपाई के 2 से 3 सप्ताह बाद शुरू हो जाता है। फूल लगने के समय इसका प्रकोप बहुत भयंकर हो जाता है पत्तियां सिकुड़ जाती हैं तथा मुरझा कर ऊपर की ओर मुड़ जाती है और नाव का आकार ले लेती है। थ्रिप्स द्वारा क्षतिग्रस्त पौधों को देखने से मोजेक रोग का भ्रम होता है इस रोग से पौधों की वृद्धि एवं विकास पर अनुकूल प्रभाव पड़ता है और उपज भी बहुत कम हो जाती है।

चेंपा--
यह छोटे हरे पीले रंग के कीट होते हैं इसके लार्वा एवं प्रौढ़ पौधों के विभिन्न भागों में रस चूसकर पौधों के विकास एवं बढ़वार को प्रभावित करते हैं। प्रभावित पौधों की पत्तियों में पीले और गहरे हरे रंग के धब्बे पड़ जाते हैं। ऐसे पौधों पर फूल और फल कम लगते हैं पौधे छोटे एवं झाड़ीनुमा हो जाते हैं। यह पौधे विषाणु रोग भी फैलाते हैं।


रोकथाम--- 
(1)- फाॅस्फोमिडान(85  SL ) 200-250 मिली• दवा को 1000 लीटर पानी में घोल बनाकर छिड़काव करें।
(2)- डाइजीनान 0.05 % घोल का फसल पर छिड़काव करें।

घरेलू उपचार 
 मिर्च पर लगने वाले अनेक तरह के रोगों के घरेलू उपचार के लिए आप घर पर ही बहुत ही आसानी से घरेलू कीटनाशक बना सकते हैं ।यह कीटनाशक सभी तरह की सब्जियों के पौधे और फल फूल वाले पौधों पर भी काम करेगा।

ताजा पानी - 3 लीटर
गाय का मूत्र-2 लीटर
नीम, आक ,धतूरा, सहजन, पपीता, करन्ज आदि पौधों में से पांच तरह के पौधों की 200 -200 ग्राम पत्तियां 
सभी पौधों की पत्तियां लेकर किसी बड़े बर्तन या ड्रम में पानी और गौमूत्र डालकर 15 दिन के लिये सड़ने के लिये छोड़ दें। बीच बीच में इस मिश्रण को हिलाते रहें। 15 दिन बाद इस मिश्रण को छानकर किसी प्लास्टिक के बर्तन में भरकर रख लें। पौधों पर बीमारी का प्रकोप होने पर इस तैयार मिश्रण में से 50% दवा और 50% पानी मिलाकर सप्ताह में दो बार छिड़काव करें। पौधे जल्दी ही स्वस्थ हो जायेगें।

फली छेदक-
इसकी सुड़ियां फलियों में छिद्र करके उनके अंदर प्रवेश कर जाती हैं और फलियों को खाती रहती हैं। कभी-कभी यह कीट पौधों की कोमल शाखाओं को भी काट देती है।

रोकथाम--- फलियों को तोड़ने के बाद पौधों पर सेविन के 0.2 % घोल का छिड़काव करना चाहिए और आवश्यकता पड़ने पर 10 से 15 दिन के अंतर पर दूसरा छिड़काव करें। छिड़काव के 5 से 7 दिन बाद ही फलियों को तोड़ना चाहिए। 



कटुआ कीट-
इस कीट का प्रकोप छोटे पौधों पर अधिक होता है यह कीट मिर्च के पौधों को जमीन के निकट से काट देता है। जिसके कारण उपज पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है।

रोकथाम--- इससे कीट की रोकथाम के लिए रोपाई से पूर्व हेप्टाएक्लोर को मिट्टी में अच्छी तरह से मिला दे। 
मिर्च में लगने वाले रोग

आर्द्र  बिगलन--- यह पौधे में लगने वाला एक प्रमुख रोग है। जो फफूंदी के पाइथियम ,फाइटोफ्थोरा, फ्यूजेरियम तथा राइजोक्टोनिया की विभिन्न प्रजातियों द्वारा होता है।इस रोग का आक्रमण अंकुरण के समय ही प्रारम्भ हो जाता है। इस रोग से प्रभावित पौधे जमीन की सतह से गल जाते है।

रोकथाम-- बीज को कैप्टान या थायराम नामक फफूंदी नाशक दवा से उपचारित करके बोना चाहिए।


पर्ण संकुचन ---

वायरस से होने वाला मिर्च का यह एक प्रमुख रोग है इस रोग से प्रभावित पौधों की पत्तियां सिकुड़ कर मुड़ जाती हैं और छोटी रह जाती हैं और इनमें झुर्रियां पड़ जाती हैं। पूरा पौधा बोना रह जाता है। इस रोग के वायरस को सफेद मक्खियां फैलाती हैं।

रोकथाम---
(1)- रोग ग्रसित पौधों को उखाड़ कर जला दें।
(2) रोग वाहक कीटों को नष्ट करने के लिए 0.1% मेलाथियान के गोल का छिड़काव करना चाहिए।
(3)- दानेदार कीटनाशक कार्बोफ्यूरान को पौधारोपण से पूर्व मिट्टी में मिलाएं।



मोजेक विषाणु---
इस रोग के कारण पत्तियों पर गहरे वाह हल्का हरा पीलापन लिए हुए धब्बे बन जाते हैं। इस रूम को फैलाने में रस चूसने वाले कीट सहायक होते हैं।

रोकथाम---
(1) वह दृश्य पौधों को उखाड़ कर जला दें।
(2) रोग रोधी किस्मों को उगाए।
(3) पौधशाला की भूमि से रोगी फसल के अवशेषों को एकत्र करके जला देना चाहिए अथवा मिट्टी में दबा देना चाहिए।
(4)- रोग वाहक कीटों को नष्ट करने के लिए 0.1 % मेटल स्टॉक्स के घोल का छिड़काव करें।
जीवाणु धब्बा--- यह रोग जैंथोमोनस बेसिक्टोरिया नामक जीवाणु के कारण होता है। पत्तियों पर धब्बे छोटे उठे हुए भूरे चिकने व बाद में खुरदरे हो जाते हैं। इस रोग से प्रभावित पत्तियां पीली पड़कर गिर जाती हैं।

रोकथाम---
(1)- बोने के लिए बीज स्वस्थ फसल से लेने चाहिए।
(2)- बीज को बोने से पहले किसी कवकनाशी रसायन से उपचारित करके बुवाई करें।
(3)- रोग के लक्षण दिखाई देते ही स्ट्रैप्टोसाइक्लिन के घोल का 15 दिन के अंतराल पर छिड़काव करें।


फल बिगलन रोग--
यह रोग फाइटोप्थोरा नामक फफूंदी के कारण होता है। इन फलों पर प्रारंभ में पीले भूरे रंग के सकेंद्र बलययुक्त धब्बों के रूप में होता है।

रोकथाम
(1)- डाइथेन m-45 के घोल का 10 दिन के अंतर पर दो बार छिड़काव करें।
(2)- उचित फसल चक्र बनाएं।
(3)- रोगी पौधों को उखाड़ कर मिट्टी में दबा दें।
(4)- पौधों को समय से पानी तथा कीटनाशक दवाओं का छिड़काव करते रहें।
(5)- रोग रोधी किस्मों को उगाएं।
मिर्च पर लगने वाली बीमारियां और उनका उपचार मिर्च पर लगने वाली बीमारियां और उनका उपचार Reviewed by homegardennet.com on जुलाई 08, 2020 Rating: 5

1 टिप्पणी:

  1. भाई आप ने अच्छी जानकारी दी है मुझे आप के द्वारा दी गई जानकारी अच्छी लगी है
    धन्यवाद
    good-article

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