नमस्कार दोस्तों आज हम आपके साथ सेब की खेती के बारे में जानकारी लेकर आए हैं
सेव ठंडी जलवायु का पौधा है सेब को ठंडी जलवायु के फलों का राजा कहा जाता है यह पोस्टिक एवं स्वादिष्ट और स्वास्थ्यवर्धक फल है।
जलवायु- सेव ठंडी जलवायु का फल है। इसकी बागवानी समुद्र तल से 15 00 मीटर से 24 00 मीटर ऊंचे स्थानों पर सफलता पूर्वक की जा सकती है सेव ठंडी जलवायु का फल है। मार्च तथा अप्रैल महीने में इस पर फूल पैदा होते हैं उस समय वर्षा तथा तापक्रम में उतार-चढ़ाव फल पर अधिक प्रभाव डालता है।
मिट्टी- सेव की कृषि के लिए 20 से 30% तक ढलान वाले क्षेत्र अधिक उपयोगी होते हैं सेब के लिए मिट्टी दोमट भूमि सर्वोत्तम रहती है इसमें उचित जन्म नेता किसी व्यवस्था हो शेर के लिए थोड़ी हम भूमि जिसका पीएच मान 5.5 से 6 '5 तक अच्छा रहता है भूमि पर्याप्त रूप से गहरी होनी चाहिए
(1) द्विगुणित किस्में- डिप्लोइड किस्मे अधिक मात्रा में अच्छा पराग पैदा करती हैं तथा स्वयं फल देती हैं जैसे-- गोल्डन डिलीशियस ,रूम ब्यूटी , बैंड डेविस आदि।
(2) त्रिगुणी किस्में- ट्राईफ्लोएड किस्मे स्वयं अफ्लित होती है तथा कम फल पैदा करती है जबकि उनका सेचन डिप्लॉयड किस्मो से हो जैसे-- फॉक्स ,ऑरेंज पिपिन, बाल्डविन, ब्यूटी ऑफ बाथ आदि।
शीघ्र पकने वाली किस्में--: जेम्सग्रीव , समर गोल्ड, फैनी ,आदि ।
देर से पकने वाली किस्में--::डिलीशियस ,रोम ब्यूटी ,राइमर आदि।
विभिन्न स्थानों के लिए किस्में--:
कश्मीर घाटी के लिए--- रेड डिलीशियस ,बाल्डविन, ब्लड रेड , अंबरी कश्मीरी आदि।
हिमाचल प्रदेश के लिए- कॉक्स, ऑरेंज, किंग ऑफ़ किंग्स ,लाल, डिलीशियस ,गोल्डन डिलीशियस, न्यूटन बंण्डर, आदि
कुमाऊं पहाड़ियों के लिए-- डिलीशियस, रोम ब्यूटी, गोल्डन ,पिपिन, राइमर ,विंटर, बनाना ,किंग ऑफ पिपिन, ऑरेंज पिपिन।
शिमला की पहाड़ियों के लिए- रोम ब्यूटी, लाल डिलीशियस ,ब्यूटी ऑफ बाथ, जॉनेथन ,येलो न्यूटन।
नीलगिरी पहाड़ियों के लिए--: रोम ब्यूटी गलेनगाइड रेड ।
जीव्हा रोपड़----:: सेव में इसे बैच रोपड़ के नाम से भी जाना जाता है इसमें सेब के 1 वर्ष पुराने बीज पौधे उखाड़ कर उनकी जड़ोंं को काट लिया जाता है पौधे का ऊपरी भाग तथा जड़े हटाकर मूसला जड़ को क्रिया करने के लिए चुन लिया जाता है जड़ का 12.5 से 15 सेंटीमीटर लंबे टुकड़ों में काट लिया जाता है एक अच्छा पौधा इस प्रकार के दो तीन टुकड़े दे देता है।
रोपण तथा कलिकायन के लिए मूलवृंत-- इंग्लैंड के ईस्ट मॉर्निंग अनुसंधान क्षेत्र पर सेवर के लिए मूलवृंतो का चुनाव किया गया है --
(1) अधिक बामन मूलवृंत--- (मालिंग)M-8 ,M-9, मालिग-26, एम-27
अर्ध बामन मूल वृंत--- एम-2 ,एम-4, एम-6 , एम-106 ,एम-111
प्रबल मूल व्रंत-: एम-1,एम-12,एम-13
अधिकतम प्रबल मूलवृंत---::एम-16,एम-25,एम-109
रोपण----:सेब की बागवानी मैं पौधरोपण का कार्य उस समय किया जाता है जब पौधा सुषुपता अवस्था में होता है 1 वर्ष पुराना पौधा लगाने के लिए अधिक उपयोगी होता है क्योंकि ऐसे पौधे शीघ्र ही लग जाते हैं
खाद तथा उर्वरक--
खाद तथा उर्वरक का प्रयोग पतझड़ के बाद किसी भी समय किया जा सकता है नाइट्रोजन और पोटाश की आवश्यक मात्रा को उपलब्ध कराने के लिए उर्वरकों की आवश्यक मात्रा को खेत में एक साथ चढ़ाव करके उसको फावड़े या कुदाल से अच्छी तरह से भूमि में मिला सकते हैं
सिंचाई करना--
पौधों को अपने प्रारंभिक समय से बसंत तथा ग्रीष्म ऋतु में सिंचाई की आवश्यकता होती है जिन क्षेत्रों में सेब के बाग हैं पर्याप्त मात्रा में होने के कारण पौधों की एक बार लग जाने पर फिर उन्हें सिंचाई की आवश्यकता नहीं होती है
निकाई गुडाई--
अधिकतर सेव को पहाड़ी स्थानों पर उगाया जाता है और वहां पर घास फूस को निकाल देने से भूमि कटाव होने की संभावना बढ़ जाती है ग्रीष्म ऋतु में एक दो जुताई द्वारा खरपतवार को नष्ट कर दिया जाता है ग्रीष्म ऋतु में जमीन जोतने से जीवांश पदार्थ की मात्रा बढ़ जाती है
आरंभ की काट -छांट
कृदंत की क्रिया कुछ वर्षों तक पौधों की ट्रेनिंग के लिए या पौधों की इस प्रकार की आकृति बनाने के उद्देश्य से की जाती है कि उत्पन्न शाखाओं के मध्य के कोण बड़े-बड़े तथा शाखाएं अधिक मजबूत बने ,जो फलों के भार को सहन कर सके।
सेब को ट्रेन करने में अधिकतर सम परिवर्तित अग्रहरी विधि काम में लाई जाती है इस विधि से पौधों को ट्रेन करने के लिए पौधों को लगाते समय जमीन से केवल 75 सेंटीमीटर छोड़कर काट दिया जाता है कश्मीर में 1.2 से 1.35 मीटर ऊंचा तना रखा जाता है तने के चारों तरफ तीन से पांच मुख्य शाखाएं बढ़ने दी जाती हैं पौधों को लगाते समय यदि उनमें शाखाएं हैं तो उनको ऊपर से थोड़ा काट देना चाहिए और अतिरिक्त शाखाओं को पौधों से हटा देना चाहिए।
(1) चटाई करते समय सूखी और टूटी हुई शाखाओं को काट देना चाहिए।
(2) पेड़ के ऊपरी भाग से शुरू कर के भीतर की ओर कटाई करनी चाहिए।
(3) पेड़ के जिस भाग में शाखाएं बहुत घनी हो उनमें से कुछ शाखाओं को काट देना चाहिए।
लौकी पर लगने वाले रोग और उनका उपचार
लौकी पर लगने वाले रोग और उनका उपचार
फूल और फल लगना-
सेव के पौधों में बसंत ऋतु में फूल आता है फल अगेती तथा पछेती जातियों के अनुसार अगस्त से अक्टूबर तक पकते हैं सेब के पौधों से 5 वर्ष बाद फल मिलने लगते हैं मृदा के पोषक तत्वों की कमी तथा मृदा में नमी की कमी के कारण समय से पहले फल गिरने लगते हैं
जिसे रोकने के लिए कुछ उपाय किए जाते हैं
(1) मृदा में बोरान तथा मैगनीज की कमी को पूरा करना चाहिए।
(2) अल्फा नेप्थलीन एसिटिक एसिड का छिड़काव 1.5 मिलीलीटर प्रति लीटर पानी की दर से करना चाहिए।
फलों को तोड़ना-
जब फलों का रंग कुछ बदल जाता है तथा वे मुलायम हो जाते हैं तो सावधानीपूर्वक वृक्षों से डंठल सहित तोड़ लेना चाहिए। फल तोड़ते समय इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि फल किसी प्रकार से चोटिल ना हो।
विपणन--
सेव करो पौधों से तोड़ने के बाद रंग और आकार के अनुसार उनका चयन कर दिया जाता है फलों को कागज में लपेट कर लकड़ी के बक्से मैं मैं पैक कर दिया जाता है पेटियो में सेव भरते समय अगल बगल से पुआल अथवा घास लगा दी जाती है जिससे सेवो की रगड़ पेटियों के किनारे से ना लगे अन्यथा सेव खराब हो सकते हैं।
कीट नियंत्रण
(1) वूली एफिड-
जहां पर से उत्पन्न किया जाता है उन सभी स्थानों पर कीट को देखा जाता है मार्च से दिसंबर तक इसकी क्रियाशीलता बढ़ जाती है इसका आक्रमण जड़ तना शाखाओं सभी पर होता है इसमें प्रभावित भागो पर छोटी छोटी गुड़िया बन जाती हैं जिससे फल लगना कम हो जाते है।
रोकथाम
(1) जड़ों पर आक्रमण को नष्ट करने के लिए 0.05 प्रतिशत फर्स्फेमिडान घोल 5 से 10 लीटर प्रति पेड़ की दर से डालना चाहिए।
(2) मेटासिस्टाकस 1 लीटर दवा का 1000 लीटर पानी में घोल बनाकर सितंबर से अक्टूबर के माह में फल तोड़ने के पश्चात छिड़काव करना चाहिए
(3) इस कीट के जैविक नियंत्रण के लिए शिमला तथा कुल्लू घाटी में कीट का प्रयोग किया जाता है।
सेनजोस स्केल
कश्मीर एवं कुल्लू घाटी में इस कीट का प्रकोप अधिक होता है ।कीट से प्रभावित भाग पर भूरा पाउडर सा जमा हो जाता है। इसके नियंत्रण न करने पर पेड़ सूख जाते हैं।
रोकथाम ---
(1) जाडो के मौसम में 0.03% डायजिनान का छिड़काव करें।(2) डीजल ऑयल इमल्शन 5 लीटर पोटाश फिश ऑयल साबुन 2 किलोग्राम तथा पानी 14 लीटर के साथ घोलकर नवंबर से फरवरी तक छिड़काव करें।
पतियों को खाने वाले कीट
यह पत्तियों को खाकर नष्ट करता है जिससे वृक्षों की वृद्धि व फसल मारी जाती है ।इस कीट का प्रकोप वर्षा ऋतु में अधिक होता है।
रोग नियंत्रण-
(1) स्टेम ब्लैक --: यह बीमारी कुमायूं तथा उत्तर प्रदेश सेव केे वृक्षों में अधिक लगती है। इसमेंं संसगिंत भाग काले पड़ जाते हैं एवं सूख जाते हैं। कृंतन द्वारा पैदा हुए विभागों से फफूंद प्रवेश करता है। इसके कटे हुए भागों पर 30 30 ग्राम रेड लेड तथा आक्रमण हो जाता है कॉपर कार्बोनेट 100 सीसी कच्चे अलसी के तेल में घोलकर लगाया जाए तो इसका आक्रमण रुक जाता है बसंत में चूने गंधक का छिड़काव दो बार करने से इसको रोका जा सकता है।
(2) पिंक रोग--:कुमाऊ तथा उत्तर प्रदेश में इस बीमारी का सेव में अधिक नुकसान होता है जल निकास की व्यवस्था उचित न होने पर एवं पेड़ अधिक घने होनेे पर उसका आक्रमण हो जाता है इसका उपचार स्टेम ब्लैक की तरह है।
(3) ब्राउन रोट--: पंजााब में इस बीमारी से सेव व नाशपाती मे अधिक नुकसान होता है यह फल खूंटियों एवं शाखाओं पर आक्रमण करती हैं ।
रोकथाम --: सडे हुए फलों को अलग करके जमीन में गाड़ देना चाहिए तथा केंकर वाली शाखाओं एवं इस पर को गर्मियों में काट देना चाहिए।
Seb ki khaiti || सेब की खेती
Reviewed by homegardennet.com
on
मई 18, 2020
Rating:
कोई टिप्पणी नहीं:
thanks for your comment