अदरक की खेती

अदरक की खेती

अदरक एक भूमिगत रूपांतरित तना है यह मिट्टी के अंदर क्षैतिज रूप में बढ़ता है। इसमें काफी मात्रा में भोज्य पदार्थ संचित रहते हैं जिसके कारण यह मोटा हो जाता है अदरक एक जिंजीवरेसी कुल का पौधा है। अदरक मुख्य रूप से उष्ण एवं नमी युक्त क्षेत्र की फसल है इसकी उत्पत्ति दक्षिणी और पूर्वी एशिया में भारत ,चीन में हुई। 


भारत की भाषा में अदरक को विभिन्न नामों से जाना जाता है जैसे गुजराती अदरक मराठी बंगाली तमिल कन्नड़ अदरक हिंदी पंजाबी आदि।
इसका प्रयोग प्राचीन काल से ही मसाले सब्जी और औषधि के रूप में किया जाता है। अब अदरक का प्रयोग सजावटी पौधों के रूप में भी किया  जाने लगा है। जमायका की अदरक का रंग हल्का गुलाबी होता है और अफ्रीकन अदरक का रंग हल्का हरा होता है ।

आप इस विडिओ को देखकर अदरक घर पर भी उगा पायेगें

गमले मे अदरक कैसे लगाएं





अदरक उत्पादन क्षेत्र-----::  
भारत में अदरक की खेती का क्षेत्रफल 136 हजार हेक्टेयर है। जो उत्पादित मसालों में प्रमुख है भारत में हल्की अदरक की खेती मुख्य थे केरल उड़ीसा असम यूपी पश्चिम बंगाल आंध्र प्रदेश हिमाचल प्रदेश और मध्य प्रदेश हैं। केरल देश में अदरक उत्पादन का प्रथम स्थान प्राप्त है।


जलवायु----
इसकी खेती गर्म तथा आद्रता वाले स्थानों में की जाती है। हल्की वर्षा बुवाई के समय अदरक की गांठ के जमाव के लिए आवश्यक है इसकी खुदाई के 1 माह पूर्व सूखे मौसम की आवश्यकता पड़ती है खेती बुवाई या रोपड़ अदरक की फसल की खेती के लिए आवश्यक है 1500-1800 mm  वार्षिक वर्षा वाले क्षेत्रों में इसकी उपज अच्छी होती है।


भूमि एवं उसकी तैयारी
यह सभी प्रकार की भूमियों में उगाई जा सकती है इसके लिए हल्की दोमट बलुई मिट्टी इसके लिए सर्वोत्तम होती है भूमि में उचित जल निकास की व्यवस्था होनी चाहिए ।
इसके खेत की तैयारी के लिए एक जुताई मिट्टी पलटने वाले हल से तथा तीन से चार जुताईयां देशी हल से करनी चाहिए प्रत्येक जुताई के बाद खेत में पाटा लगाकर खेत को भुरभुरा बना लिया जाता है।


अदरक की खेती कब करें?

बोने का समय--
दक्षिण भारत में इसकी बुवाई अप्रैल से मई तक होती है जबकि मध्य उत्तर भारत में इसकी बुवाई अप्रैल से जून के चौथे सप्ताह तक की जाती है इसके लिए सबसे उचित समय 15 मई से 30 जून है 15 जून के बाद बुवाई करने पर कंद सड़ने लगते हैं और अंकुरण पर बुरा प्रभाव भी पड़ता है पहाड़ी क्षेत्रों में इसकी बुवाई के लिए समय 15 मार्च के आसपास बुवाई की जाने वाली फसल में सबसे अच्छा उत्पादन प्राप्त होता है इन कंदो को लगभग 40 से 50 सेमी के अंतर पर खेत में बोना चाहिए।



खाद तथा उर्वरक
मृदा जांच के आधार पर खाद एवं उर्वरकों का उपयोग करना उचित रहता है मृदा जांच ना होने पर 200 से ढाई सौ कुंतल गोबर की सड़ी खाद 50 से 60 किलोग्राम फास्फोरस 40 से 50 किलोग्राम पोटाश तथा 60 से 70 किलोग्राम यूरिया प्रति हेक्टेयर की दर से देनी चाहिए। गोबर की खाद बीज बोने के लगभग एक महीना पहले खेत में अच्छी तरह से मिला दे नहीं चाहिए तथा फास्फोरस और पोटाश की पूरी मात्रा यूरिया के साथ खेत में मिलाने से खेत की उर्वरा शक्ति बढ़ जाती है।




सिंचाई तथा जल निकास
वर्षा कालीन फसल में आमतौर पर सिंचाई की आवश्यकता नहीं होती है यदि लंबे समय तक वर्षा ना हो तो आवश्यकतानुसार सिंचाई कर देनी चाहिए ग्रीष्मकालीन समय में 5 से 7 दिन की अंतर पर सिंचाई करनी चाहिए वर्षा कालीन फसल के लिए जल निकास का उचित प्रबंध होना चाहिए जिससे खेत के फालतू को पानी को समय से बाहर निकाला जा सके ।




अदरक की खुदाई---- अदरक की गांठ है जब तैयार हो जाएं तो खुदाई करके निकाल ले और उनको बाजार में बेचने के लिए भेज दे। बीज के लिए नवंबर से दिसंबर में अदरक के गाठो को खेत से बाहर निकाला जाता है।


उपयोगिता----   अदरक का प्रयोग हमारे जीवन में वैदिक काल से चला आ रहा है इसका प्रयोग औषधि तथा सौंदर्य प्रसाधन के रूप में किया जाता है। खुशबू पैदा करने के लिए उसका प्रयोग आचार सब्जी में तथा चाय का स्वाद बढ़ाने के लिए किया जाता है।



औषधीय रूप में-----::
अदरक को घर का वैध भी कहते हैं जो हमारे शरीर में होने वाले रोगों को दूर करने में सहायक है अदरक को सोंठ के रूप में भी इस्तेमाल किया जाता है ।  खून की कमी ,पथरी ,लीवर वृद्धि ,पीलिया, पेट के रोग बवासीर तथा वायु रोगों के लिए इसका प्रयोग दवा के रूप में किया जाता है।


मसाले के रूप में----: चटनी ,सब्जी ,शरबत तथा चाट के बनाने में कच्ची तथा सूखी अदरक का प्रयोग किया जाता है।


सौंदर्य प्रसाधन के रूप में------:
तेल बनाने में ,पेस्ट बनाने में , पाउडर तथा क्रीम को बनाने में इसका प्रयोग किया जाता है।


सफेद सौठ बनाना-----
सोंठ बनाने के लिए अदरक को 7 से 8 महीने के बाद निकालें जव पत्ते पीले पड़ कर गिरना शुरू हो जाएं। तव कंदो को खेत से खोदकर अच्छी तरह से लकड़ी या चाक़ू से साफ कर लें।
ध्यान रहे कंद कटने न पाए छिलका निकालने के बाद कंद को 8 से 10% नमी रहने तक धूप में सुखाएं । सूखे अदरक को चूने के पानी में ,10 से 20 ग्राम प्रति लीटर शुद्ध पानी, में 4 से 6 घंटा तक धोकर रखें इसके निकालने के बाद धूप में सुखाएं इस प्रकार यह विधि दो से तीन बार अपनाएं जिससे सोंठ का रंग सफेद हो जाए ।



        अदरक में लगने वाले कीट तथा रोग नियंत्रण


तना बेधक कीट---'--:: इस कीट की सूँड़ी रात में निकलती है जो कोमल तनु को जमीन की सतह से काट देती है।


रोकथाम-----  इन कीटों से बचाव के लिए अंतिम जुताई के समय खेत में हेप्टएक्लोर 5% की धूल को 20 से 25 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से मिट्टी में अच्छी तरह से मिला दे।


पर्ण चित्ती रोग--  यह रोग फाइलोंस्टिक्टा जिंजीवरी नामक कवक के द्वारा होता है यह रोग जुलाई से अक्टूबर के बीच ज्यादा होता है इस रोग की शुरुआत पत्तों पर सूखे पानी के धब्बों के रूप में होती है जो बाद में सफेद धब्बे के रूप में बदल जाते हैं। इस रोग का प्रभाव पौधों की पत्तियों पर पड़ता है।


रोकथाम----इस रोग का नियंत्रण करने के लिए मैनकोज़ेब 0.2 प्रतिशत का छिड़काव करें ।


मृदु बिगलन रोग---
यह रोग एक जीवाणु द्वारा होता है इस रोग का आक्रमण फसल की प्रारंभिक अवस्था में अधिक होता है जिससे प्रभावित पौधों की जड़ें सड़ने लगती हैं और पौधा सूख जाता है।


रोकथाम----  जिस फसल में इस रोग का प्रकोप हो उसमें नाइट्रोजन धारी उर्वरकों का प्रयोग ना करें। इस रोग से प्रभावित पौधों को उखाड़ कर जला दें अथवा मिट्टी में दबा दें । और जल निकासी का उचित प्रबंध करें ।


अदरक की खेती अदरक की खेती Reviewed by homegardennet.com on जून 07, 2020 Rating: 5

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