मिर्च की खेती के बारे में जानकारी





नमस्कार दोस्तों क्या आप जानते है। भारतवर्ष में मिर्च को लगभग सभी राज्यों में उगाया जाता है आंध्र प्रदेश मिर्च का सबसे बड़ा उत्पादक राज्य है इसके बाद कर्नाटक व महाराष्ट्र का नंबर आता है। 
मिर्च की खेती मुख्य रूप से मसाले के लिए की जाती है हरी मिर्च का प्रयोग सब्जी के रूप में होता है इससे बना आचार बहुत लोकप्रिय होता है मिर्च की कुछ जातियो में तीखापन या चटपटा पन बहुत कम होता है जिन्हें सलाद के रूप में प्रयोग किया जाता है। 

चलिए पता करते है कि मिर्च को किस तरीके की जलवायु पसंद है ।



जलवायु
मिर्च के लिए गर्म तथा आद्र जलवायु की आवश्यकता होती है मिर्च कोहरे को सहन नहीं कर पाती है सामान्य रूप से मिर्च के लिए 20 से 25 सेंटीग्रेड तक का तापमान होना चाहिए अधिक वर्षा वाले क्षेत्रों में मिर्च की खेती सफलतापूर्वक नहीं की जा सकती क्योंकि पौधे सड़ने गलने लगते हैं और पत्तियां गिर जाती है।





भूमि- 
मिर्ची के लिए दोमट मिट्टी सर्वोत्तम होती है इसकी खेती सभी प्रकार की भूमियों में  की जा सकती है जिसमें जल निकास का उचित प्रबंध हो। जल प्लावन भूमियों में मिर्च की खेती नहीं की जा सकती ।



मसाले और अचार वाली किस्में- 
यह किस्म लंबी, पतली और तीखी होती है इस समूह की प्रमुख किस्में निम्न है-'--- आंध्र ज्योति, कल्याणपुर मोहिनी, सावरी ,भाग्यलक्ष्मी, पंत सी ,पूसा ज्वाला, मूसल वादी, पटना रेड ,पूसा सदाबहार, कल्याणपुर चमन ,कल्याणपुर हिसार शक्ति, सागर अंगार ,हिसार विजय  इत्यादि। 



सब्जी वाली किस्में- 
इन किस्मो का प्रयोग सब्जी बनाने में किया जाता है इन्हें शिमला मिर्च भी कहते हैं । इस समूह की प्रमुख किस्में निम्न है-- 
गोल्डन क्वीन ,कैलिफोर्निया वंडर ,येलो वंडर, चाइनीस जायंट ,किंग ऑफ नॉर्थ, रूबी किंग।



प्रमुख किस्मों की विशेषताएं--

(1) चंचल-- 
इसकी फलियां मोटी छोटी लाल और बड़ी तीखी होती है फलियों की शिखा ऊपर की ओर रहती है इसकी उपज 20 से 25 कुंतल प्रति हेक्टेयर मिल जाती है। 

(2)जी-3  
यह किस्म  अनुसंधान केंद्र आंध्र प्रदेश द्वारा विकसित की गई है इसका पौधा लगभग 80 सेंटीमीटर ऊंचा होता है फलियों की लंबाई 4 से 5 सेंटीमीटर तथा प्रति पौधा लगभग 60 से 70  मिर्च देता है इस किस्म का औसत उत्पादन 70 क्विंटल प्रति हेक्टेयर है। 

पूसा ज्वाला'--  इस किस्म का विकास MP-46-A पुरी रेड के संकर द्वारा विकसित किया गया है । यह थोड़ी जल्दी तैयार होने वाली एवं अच्छी उपज देने वाली उन्नति किस्म है इसके सिरे लंबे पतले मुड़े हुए होते हैं इसके पौधे फल से लगे रहते हैं और फलों में काफी तीखापन होता है ।

पूसा सदाबहार--- यह एक बारहमासी किसमें है जिसमें बच्चों के रूप में फल लगते हैं यह किस्म वर्ष में 23 फसल देती है व की फलियां चमकीले लाल रंग की होती है यह पोटैटो वायरस यार्ड और और लीफ कंचन नामक रोगों की प्रतिरोधी किसमें है। 
खेती की तैयारी 
मिर्च के लिए एक जुताई मिट्टी पलटने वाले हल तथा दो या तीन जुताई देशी हल से करनी चाहिए । ट्रैक्टर की जुताई के बाद पाटा लगा कर खेत समतल बना लिया जाता है खेत को तैयार करने के बाद सिंचाई के अनुसार नालियां का निर्माण कर लेना चाहिए। 

रोपाई ---:: खेत में रोपाई मुख्य रूप से पंक्तियां बनाकर की जाती है इन पंक्तियों की दूरी 40 से 45 सेंटीमीटर तथा पौधों में दूरी 30 से 35 सेंटीमीटर रखी जाती है रोपाई के तुरंत बाद खेत की सिंचाई करना आवश्यक होता है जिससे खेत में पौधों की जड़ें आसानी से मिट्टी में चिपक बुलेट चलाती है वह हमको समझ और कोई नहीं समझता जाती है।

खाद तथा उर्वरक---
मिर्च की अच्छी उपाय लेने के लिए मिट्टी की जांच के उपरांत खाद एवं उर्वरक डालने चाहिए- गोवर की सड़ी खाद को रोपाई करने के तीन चार सप्ताह पहले खेत में समान रूप से पहला देना चाहिए नाइट्रोजन की आधी मात्रा फास्फोरस और पोटाश की पूरी मात्रा रोपाई के पूर्व खेत में पूरी तरह से मिला  देनी चाहिए।  



सिंचाई एवं जल निकास----
प्रथम सिंचाई रोपाई के तुरंत बाद करनी चाहिए और आगामी सिंचाई आवश्यकता अनुसार करनी चाहिए। गर्मियों में 6 से 8 दिन के अंतर पर और जाड़ों में 10 से 15 दिन के अंतर्गत सिंचाई करते रहना चाहिए ,यदि किसी कारण खेत में फालतू पानी इकट्ठा हो जाए तो उसे तुरंत निकाल देना चाहिए अन्यथा फसल खराब होने की संभावना रहती है।




कीट नियंत्रण---
चेपा-- 





यह छोटे हरे पीले रंग के कीट होते हैं जो पौधों के विभिन्न विभागों से रस चूस कर पौधों के विकास और बढ़वार को प्रभावित करते हैं प्रभावित पौधों की पत्तियों में पीले और गहरे रंग के धब्बे पड़ जाते हैं ऐसे पौधों पर फूल और फल कम लगते हैं पौधे छोटे तथा झाड़ी नुमा हो जाते हैं यह पौधे विषाणु रोग जी फैलाते है।



रोकथाम-फाॅस्फोमिडान 200 से 250 मिलीलीटर दवा 800 से 1000 लीटर पानी में घोल बनाकर छिड़काव करें, और डाइजीनान घोल का फसल पर छिड़काव करें।


फली छेदक--
इसकी सुडियां फलियों में छिद्र करके अंदर प्रवेश कर जाती है और फलियों को खाती रहती हैं । कभी-कभी यह कीट पौधों की कोमल शाखाओं को भी नष्ट कर देते हैं।



रोकथाम ---
फलियों के तोड़ने के बाद पौधों पर सेविंग के 0.2% घोल का छिड़काव करना चाहिए और आवश्यकता पड़ने पर 10 से 15 दिन के अंदर दूसरा छिड़काव करे।छिड़काव के पांच-छह दिन बाद ही फलियों को तोड़ना शुरू करें।

कटुआ किट--
इस कीट का प्रकोप छोटे पौधों पर अधिक होता है यह कीट मिर्च के पौधों को जमीन के निकट से काट देता है जिसके कारण उपज पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है
रोकथाम--
इस कीट की रोकथाम के लिए रोपाई से पूर्व 5% का  हैप्टाक्लोर 20 से 25 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से खेत में मिला दें।



रोग नियंत्रण

मोजेक विषाणु--

इस रोग के कारण पत्तियां पर गहरे व हल्का हरा रंग पीलापन  के धब्बे बन जाते हैं इस रोग को फैलाने में रस चूसने वाले कीट सहायक होते हैं।

रोकथाम--
(1) रोग ग्रस्त पौधों को उखाड़ कर जला दें ।
(2) खेत और पौधशाला की भूमि से रोगी फसल के अवशेषों को एकत्र करके जला देना चाहिए।
(3) रोग वाहक कीटों को नष्ट करने के लिए 1% मेटा सिस्टार्क्स घोल का छिड़काव करें।



जीवाणु धब्बा-- 
यह रोग जैंथमोनस बेसिक्टोरिया नामक जीवाणु के कारण होता है पत्तियों पर धब्बे छोटे उठे हुए भूरे पहले चिकने  और बाद में खुरदरे हो जाते हैं इस रोग से प्रभावित पत्तियां पीली पढ़कर गिर जाती हैं। 

रोकथाम -
(1) बोलने के लिए बीज स्वस्थ फसल से लेना चाहिए।
(2) बीज को बोलने से पहले किसी कवकनाशी राशन से उपचारित करके बुवाई करें।
तोड़ाई-: 
मिर्चकी तोडाई उसके उपयोग के आधार पर निर्भर करती है। हरी मिर्च या शिमला मिर्च जब पूर्ण आकार की हो जाती है, तो उन्हें तोड़ लिया जाता है, सलाद सब्जी तथा चटनी के लिए मिर्च को लाल होने से पहले तोड़ लेना चाहिए ।इसकी तोड़ाई हाथ से की जाती है और सप्ताह में दो बार की जाती है।


भंडारण--
हरी मिर्च तथा शिमला मिर्च को  जीरो सेंटीग्रेड तापमान पर 40 दिन तक भंडारित किया जा सकता है अच्छी प्रकार से सुखाई गई सूखी मिर्च को शुष्क और हवादार स्थान में कई महीनों तक सुरक्षित रखा जा सकता है।


मिर्च की खेती के बारे में जानकारी मिर्च की खेती के बारे में जानकारी Reviewed by homegardennet.com on मई 20, 2020 Rating: 5

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