नमस्कार दोस्तो ।
शलजम भी गाजर और मूली की तरह एक जड़ वाला पौधा है। यह सब्जी के रूप में प्रयोग किया जाता है। शलजम की खेती उत्तर भारत में बड़े स्तर पर की जाती है। कहीं कहीं पर इसे पशुओं के चारे के रूप में भी खिलाया जाता है। यह सबसे तेजी से उपज देने वाली फसल है।आज हम आपको इसकी उन्नत खेती के बारें में बतायेगें।
शलजम भी गाजर और मूली की तरह एक जड़ वाला पौधा है। यह सब्जी के रूप में प्रयोग किया जाता है। शलजम की खेती उत्तर भारत में बड़े स्तर पर की जाती है। कहीं कहीं पर इसे पशुओं के चारे के रूप में भी खिलाया जाता है। यह सबसे तेजी से उपज देने वाली फसल है।आज हम आपको इसकी उन्नत खेती के बारें में बतायेगें।
वानस्पतिक नाम -
ब्रैसिका रापा ( Brassica rapa )
कुल ( family )- ब्रैसेकेसी / क्रूसीफेरी
ब्रैसिका रापा ( Brassica rapa )
कुल ( family )- ब्रैसेकेसी / क्रूसीफेरी
भूमि -
शलजम की उन्नतशील खेती के लिये गहरी भुरभुरी ,जीवांशयुक्त बलुई दोमट मिट्टी सही रहती है ज्यादा रेतीली मिट्टी में शलजम नही उगानी चाहिये।
जलवायु-
यह सर्दी की ॠतु की फसल है।इसे ठण्डी और नम जलवायु की आवश्यकता होती है।शलजम में पाले आदि को सहन करने की क्षमता अधिक होती है।ज्यादा गर्मी होने या नमी की कमी होने पर इसकी गांठें कङी और तीखी हो जाती है।शलजम की ज्यादातर किस्में 10-15 डिग्री सेल्सियस तक अच्छी तरह से उगती हैं। भारत में ज्यादातर किसान इसे उत्तरी भारत या पहाड़ी क्षेत्रों में उगाते हैं।
यह सर्दी की ॠतु की फसल है।इसे ठण्डी और नम जलवायु की आवश्यकता होती है।शलजम में पाले आदि को सहन करने की क्षमता अधिक होती है।ज्यादा गर्मी होने या नमी की कमी होने पर इसकी गांठें कङी और तीखी हो जाती है।शलजम की ज्यादातर किस्में 10-15 डिग्री सेल्सियस तक अच्छी तरह से उगती हैं। भारत में ज्यादातर किसान इसे उत्तरी भारत या पहाड़ी क्षेत्रों में उगाते हैं।
उन्नत किस्में-
शलजम पूसा कंचन,पूसा स्वेती,पंजाब सफेद,एल-1,वी-4सफेद,शलजम N1, आदि
भूमि की तैयारी-
शलजम की उन्नतशील खेती के लिये में अधिक उपज के लिये खेत की अच्छी तैयारी करना जरूरी है। इसके लिये खेत की पहली जुताई मिट्टी पलट हल से करें ।इसके बाद 3,4 जुताई कल्टीवेटर हल से करें। मिट्टी को अच्छे तरीके से भुरभुरी बना लें। मिट्टी जितनी भुरभुरी होगी फसल से उतना अधिक उत्पादन होगा। खेत में दो - तीन गहरी जुताई कर लेनी चाहिये अगर आप पानी लगाने के बाद मिट्टी की जुताई करें तो मिट्टी भुलभुरी बनेगी जो शलजम की खेती के लिये सबसे ज्यादा सही रहती है।
खाद तथा उर्वरक-
शलजम की खेती के लिए कार्बनिक उर्वरकों का विशेष महत्व होता है शलजम का प्रति हेक्टेयर उत्पादन बढ़ाने के लिए मृदा परीक्षण के बाद ही उर्वरक की मात्रा निर्धारित करनी चाहिए उस दशा में जब मृदा परीक्षण नहीं हो पा रहा है तब 200 से लेकर 250 क्विंटल तक गोबर की सड़ी खाद, 50 से लेकर 70 किलोग्राम नाइट्रोजन ,50 से 60 किलोग्राम फास्फोरस तथा 40 से 50 किलोग्राम पोटास प्रति हेक्टेयर की दर से आप खेत में दे सकते हैं गोबर की सड़ी खाद बीज बोने के 1 माह पूर्व खेत की तैयारी करते समय खेत में डाल देनी चाहिए। नाइट्रोजन का 1/3 भाग ,फास्फोरस तथा पोटाश की पूरी मात्रा बीज बोने के पहले या बीज बोने के समय खेत में मिला दें, शेष नाइट्रोजन की मात्रा जड़ों के निर्माण के समय तथा शेष नाइट्रोजन जड़ों के विकास के समय देनी चाहिए।
शलजम की खेती के लिए कार्बनिक उर्वरकों का विशेष महत्व होता है शलजम का प्रति हेक्टेयर उत्पादन बढ़ाने के लिए मृदा परीक्षण के बाद ही उर्वरक की मात्रा निर्धारित करनी चाहिए उस दशा में जब मृदा परीक्षण नहीं हो पा रहा है तब 200 से लेकर 250 क्विंटल तक गोबर की सड़ी खाद, 50 से लेकर 70 किलोग्राम नाइट्रोजन ,50 से 60 किलोग्राम फास्फोरस तथा 40 से 50 किलोग्राम पोटास प्रति हेक्टेयर की दर से आप खेत में दे सकते हैं गोबर की सड़ी खाद बीज बोने के 1 माह पूर्व खेत की तैयारी करते समय खेत में डाल देनी चाहिए। नाइट्रोजन का 1/3 भाग ,फास्फोरस तथा पोटाश की पूरी मात्रा बीज बोने के पहले या बीज बोने के समय खेत में मिला दें, शेष नाइट्रोजन की मात्रा जड़ों के निर्माण के समय तथा शेष नाइट्रोजन जड़ों के विकास के समय देनी चाहिए।
बीज की दर -
4 से 5 किलोग्राम /हेक्टेयर की दर से बीज की आवशयकता पङती है। बीज बोने से पहले एग्रोसन जी▪ एन या कैप्टान (2.5 ग्राम दवा / किलोग्राम से उपचारित कर लेना चाहिये)
4 से 5 किलोग्राम /हेक्टेयर की दर से बीज की आवशयकता पङती है। बीज बोने से पहले एग्रोसन जी▪ एन या कैप्टान (2.5 ग्राम दवा / किलोग्राम से उपचारित कर लेना चाहिये)
बीज बोने की विधि-
शलजम को भी मूली की तरह खेत में मेड़ बनाकर या चौरस खेत में हल के पीछे बुवाई करते है। मेड़ को15 सेंटीमीटर ऊंचा और 30 सेंटीमीटर की दूरी पर बनाते हैं और पंक्तियों में शलजम की बुवाई कर दी जाती है।
शलजम को भी मूली की तरह खेत में मेड़ बनाकर या चौरस खेत में हल के पीछे बुवाई करते है। मेड़ को15 सेंटीमीटर ऊंचा और 30 सेंटीमीटर की दूरी पर बनाते हैं और पंक्तियों में शलजम की बुवाई कर दी जाती है।
पंक्तियों की पंक्तियों से दूरी 30 सेंटीमीटर
पौधों की दूरी लगभग 15 सेंटीमीटर रखते हैं ।
पौधों की दूरी लगभग 15 सेंटीमीटर रखते हैं ।
कभी-कभी चारे के लिए उगाई जाने वाली फसल की बुवाई छिड़काव विधि से की जाती है। इस विधि में बीज को 1:4 के अनुपात में बालू में मिलाकर खेत में छिड़काव कर दिया जाता है जिससे बाद में शलजम उग आती है ।शलजम की उन्नत खेती के लिए एक्सएमएड बनाकर पति के रूप में ही शलजम की बुवाई करनी चाहिए
सिंचाई -
शलजम बोने से पूर्व अगर आप के खेत में नमी नहीं है तो एक हल्की सिंचाई कर लेनी चाहिए। इसके बाद आवश्यकता अनुसार जब भी जरूरत हो तब 10 15 दिन के अंतर पर हल्की हल्की सिंचाई करते रहना चाहिए ।गर्मियों में लगाई गई फसल में 5 से 6 दिन का अंतर पर आप सिंचाई कर सकते हैं। शलजम की फसल में अगर आवश्यकता से अधिक पानी इकठ्ठा हो जाए तो उसे तुरंत निकालने की व्यवस्था करें अन्यथा आपकी शलजम की फसल खराब हो सकती है।
बीमारियाँ और उनकी रोकथाम-
1-सफेद रतुआ( white rust) यह एक होने के कारण होता है इस रोग से प्रभावित पौधे की पत्तियों पर सफेद या पीले से फफोले दाग धब्बे बन जाते हैं जो बाद में आकार बड़ा करते हुए पूरी पत्तियों को ही खराब कर देते हैं पत्तियों की निचली सतह पर सफेद रंग का चोर दिखाई देता है जिसके कारण शलजम की उपज एवं गुणवत्ता पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है ।
रोकथाम -
इस रोग के नियंत्रण के लिए डाइथेन जेड -78 के 0. 2% घोल का छिड़काव संक्रमित पौधों पर करना चाहिए।
2-मोजेक रोग-
यह रोग विषाणु के द्वारा होता है रोग से प्रभावित पौधे की पत्तियां धब्बे युक्त पीले रंग की हो जाती हैं इसका
यह रोग विषाणु के द्वारा होता है रोग से प्रभावित पौधे की पत्तियां धब्बे युक्त पीले रंग की हो जाती हैं इसका
आकार सामान्य से छोटा हो जाता है तथा पत्तियों की मोटाई भी बढ़ जाती है इस लोक के विषाणु कीटों द्वारा स्वास्थ्य पौधों पर पहुंचते हैं।
रोकथाम-
शलजम की उन्नत खेती
Reviewed by homegardennet.com
on
अप्रैल 24, 2019
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