नमस्कार दोस्तों
आज हम आपको भूमि प्रयोग वनों की क्षीणता चारागाह तथा फसलो का पर्यावरण पर प्रभाव्
भारत में भूमि उपयोग की स्थति
भारत मे का कुल भोगोलिक क्षेत्रफल 328.27 मिलियन हेक्टेयर है /जिसमें से 304.9मिलियन हेक्टेयर भूमि के उपयोग सम्बन्धी है
[१] वन क्षेत्र - देश की कुल भूमि में से 68.4मिलियन हेक्टेयर भूमी में वन क्षेत्र है \ जो कुल क्षेत्रफल का 22.43 प्रतिशत है यह क्षेत्रफल दिन प्रतिदिन कम होता जा रहा है जबकि इसका कुल भौगोलिक क्षेत्रफल का 33प्रतिशत होना चाहिए ;
[२] अन्य गैर कृषि भूमि -- भारत में ऐसी भूमि लगभग 29.4 मिलियन हेक्टेयर है ऐसी भूमि को तीन वर्गों में बांटा गया है
१-चारागाह -- यह लगभग 11.2 मिलियन हेक्टेयर है
२-बिखरे पेड़ों तथा बागों वाली भूमि -- यह 3.7 मिलियन हेक्टेयर है
३-कृषि योग्य खाली भूमि --यह 14.5मिलियन हेक्टेयर है यह परती भूमि के अलावा है तथा कम उपजाऊ व् बंजर किस्म की है
[4] खेती के लिए अप्राप्य भूमि--ऐसी भूमि को दो भागो में बांटा जाता है
१-गैर कृषि कार्यो में प्रयुक्त भूमि --इसका क्षेत्रफल 22 मिलियन हेक्टेयर है यह भवनों ,सड़को,रेलों,नदियों ,झीलों से घिरी हुई है
२-ऊसर तथा बंजर भूमि -- इसके अंतर्गत रेगिस्तान ,पहाड़ ,पठारआदि आते है इसमे सुधार करके इन्हे कृषि के कामों में तो लाया जा सकता है ऐसी भूमि पर खेती करना बहुत कठिन है
[5]- खेती के लिए प्राप्य भूमि -- भारत में कृषि के लिए प्राप्य भूमि का क्षेत्रफल 142.1मिलियन हेक्टेयर है जो कुल प्रयुक्त भूमि का 46.61 प्रतिशत है
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भारत में मिर्दा अवकर्षण-
१--भौतिक अवकर्षण -- मिट्टी की उपरी परत के कोमल तथा उपजाऊ कणों का प्राकृतिक घटक एक स्थान से हटकर दूसरे स्थान पर स्थान्तरित कर देने को भूमि कटाव कहते है इस प्रकार भू -क्षरण एक भौतिक प्रक्रिया है
२ -रासायनिक अवकर्षण-- मिर्दा के रासायनिक अवकर्षण से अभिप्राय मिट्टी की उर्वरता में कमी से है वैसे तो भारत की गणना विश्व की सर्वोत्तम मिट्टियों में की जाती है उद्योगों को कच्चा माल प्रदान करने के लिए देश की भूमि का अत्यधिक शोषण किया गया है जिस कारण यहाँ की मिटटी की उर्वरता घट रही है
भारत में वनों की क्षीणता --
देश की बढती जनसंख्या की खाद्यान की पूर्ती करने के लिए वनों को काटकर खेती की गई ,रहने के लिए घर बनाये गए ,बाधों,सड़को ,तथा रेल मार्गों का निर्माण किया गया ',,,
इसके अतिरिक्त ईधन फर्नीचर तथा मकानो के लिए लकड़ी प्राप्त करने के लिये वनों को काटा गया ;
सन 1951 में वनक्षेत्र 750लाख हेक्टेयर था जो सन 1993 में घटकर केवल 390 लाख हेक्टेयर रह गया है
वनों की क्षीणता का पर्यावरण पर प्रभाव -
[1] लकड़ी तथा जड़ी बूटियों में कमी हो गयी है
[२] भूमि की उर्वरता में कमी आयी है
[३] वनों के कटाव से मिट्टी का असंतुलन बढ़ा है
[4] पर्यावरण असंतुलन में विर्द्धी हुई है
चारागाह का पर्यावरण पर प्रभाव -
भारत के लगभग 11.2 मिलियन हेक्टेयर क्षेत्र में चारागाह तथा घास के मैदान पाए जाते है जो कुल वन क्षेत्र का 20प्रतिशत भाग है जिसका क्षेत्र दिन -प्रतिदिन घटता जा रहा है यदि देश में पालतू पशुओ तथा दुधारू पशुओ की संख्या को देखा जाये तो यह आवश्यकता के हिसाब से बहुत ही कम है भारत में पशुपालन के विकाश तथा भूमि कटाव पर नियंत्रण के लिए घास का क्षेत्र बढाने की आवश्यकता है
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फसलो का पर्यावरण पर प्रभाव
पर्यावरण संतुलन को ध्यान में रखकर फसल उत्पादन के तरीके में सुधार की आवश्यकता है रासायनिक उर्वरको के स्थान पर जैव उर्वरको को बढ़ावा दे तथा फसल सुरक्षा के लिए एकीकृत नाशीजीव प्रबंधन को अपनाया जाए |
वनों के कटने से होने वाले नुकसान
Reviewed by homegardennet.com
on
जनवरी 07, 2018
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